BNSS की धारा 106 के तहत पुलिस बैंक खाता फ्रीज नहीं कर सकती — बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

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BNSS की धारा 106 के तहत पुलिस बैंक खाता फ्रीज नहीं कर सकती — बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

भारत में बढ़ते साइबर धोखाधड़ी मामलों के बीच एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला सामने आया है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि BNSS की धारा 106 के तहत पुलिस या किसी भी जांच एजेंसी को बैंक खाता फ्रीज करने का अधिकार नहीं है।

यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि लाखों नागरिकों, व्यापारियों और बैंक ग्राहकों के लिए भी राहत देने वाला है, जिनके खाते बिना किसी न्यायिक आदेश के फ्रीज कर दिए जाते हैं।

आइए पूरे फैसले को सरल हिंदी में समझते हैं।

1. अदालत के सामने सवाल क्या था?

मुख्य प्रश्न यह था:
👉 क्या जांच एजेंसी BNSS की धारा 106 के तहत किसी का बैंक खाता फ्रीज (Debit Freeze) कर सकती है?

कई याचिकाओं में शिकायत की गई थी कि पुलिस साइबर फ्रॉड की जांच करते समय सीधे ही बैंक को कहकर खाता फ्रीज करवा रही है — वह भी मजिस्ट्रेट की अनुमति लिए बिना।

2. याचिकाओं की स्थिति

याचिकाकर्ताओं के बैंक खाते इस आधार पर फ्रीज किए गए कि:

  • साइबर फ्रॉड का कुछ पैसा उनके खाते में आया था
  • बिना मजिस्ट्रेट आदेश, सीधे पुलिस द्वारा फ्रीज की कार्रवाई की गई

कुछ मामलों में बैंक के पास कोई लिखित आदेश भी नहीं था — यह एक गंभीर प्रक्रिया संबंधी त्रुटि है।

अदालत ने कहा कि इस तरह का व्यवहार “रहस्यमय” है और बैंक को इस पर जवाब देना चाहिए।

3. कोर्ट ने क्या महत्वपूर्ण बातें कहीं?

अवैध फ्रीजिंग पर मुआवज़ा लेने का अधिकार

कोर्ट ने साफ कहा:

  • जिन लोगों के खाते गलत तरीके से फ्रीज किए गए
  • वे मुआवज़ा (Compensation) के लिए कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं

4. BNSS की धारा 106 क्या कहती है?

धारा 106 = Seizure (जब्त करना)
धारा 106 का उद्देश्य:

  • सिर्फ सबूत सुरक्षित करना
  • किसी वस्तु को जब्त करना जो अपराध से जुड़ी हो

लेकिन "Attachment" या "Freeze" करने का अधिकार धारा 106 में नहीं है।

5. BNSS की धारा 107 क्या कहती है?

धारा 107 = Attachment / Forfeiture / Restoration
यानी:
👉 अगर किसी संपत्ति (बैंक बैलेंस आदि) को अपराध की कमाई माना जाता है
👉 तो पुलिस को मजिस्ट्रेट के पास आवेदन देना होगा
👉 मजिस्ट्रेट सुनवाई के बाद ही खाता फ्रीज/अटैच करने का आदेश दे सकते हैं

यानी खुद पुलिस या बैंक फ्रीज नहीं कर सकते।

6. केरल हाईकोर्ट के फैसले का संदर्भ

केरल हाईकोर्ट ने भी पहले कहा था कि:

  • धारा 106 = Seizure (पुलिस का अधिकार)
  • धारा 107 = Attachment (सिर्फ मजिस्ट्रेट का अधिकार)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसी निर्णय का समर्थन किया।

इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया — यानी केरल हाईकोर्ट का निर्णय बरकरार रहा।

7. बैंक क्या कर सकता है? (FAQ No. 21 — I4C Guidelines)

Indian Cyber Crime Coordination Centre (I4C) के अनुसार:

👉 बैंक केवल लियन (Lien) लगा सकता है।
मतलब:

  • रकम को अस्थायी रूप से रोक सकता है
  • लेकिन खाता पूरी तरह freeze नहीं कर सकता
  • और यह रोक भी सिर्फ उस रकम पर लागू होती है जो संदिग्ध है

8. अदालत के महत्वपूर्ण निष्कर्ष (Key Findings)

(1) पुलिस को धारा 106 के तहत बैंक खाता फ्रीज करने का अधिकार नहीं।

(2) खाता फ्रीज करने का अधिकार सिर्फ मजिस्ट्रेट को है — धारा 107 के तहत।

(3) बैंक, पुलिस के सामान्य पत्र पर पूरा खाता फ्रीज नहीं कर सकते।

(4) बैंक सिर्फ विवादित राशि पर "लियन" लगा सकते हैं।

(5) बिना आदेश फ्रीज किए गए खाते — अवैध हैं और मुआवज़ा योग्य हैं।

9. कोर्ट का अंतिम आदेश

  • सभी मामलों में पुलिस द्वारा धारा 106 के तहत किए गए फ्रीजिंग आदेश रद्द
  • याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार
  • नागरिकों, व्यापारियों और खाताधारकों के अधिकारों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई

आम जनता के लिए इसका मतलब

यह फैसला नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है।
अब:

✔ पुलिस सीधे खाता फ्रीज नहीं कर सकती

✔ खाता फ्रीज करने के लिए अदालत का आदेश अनिवार्य

✔ बैंक के पास कानूनी आधार न हो तो वह फ्रीज नहीं कर सकता

✔ पीड़ित लोग मुआवज़ा मांग सकते हैं

यह फैसला साइबर जांच और नागरिक अधिकारों के बीच संतुलन सुनिश्चित करता है।

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