डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड: सीनियर सिटीज़न दंपती से 11.42 करोड़ की ठगी
आजकल साइबर अपराधी नए-नए तरीकों से लोगों को ठगने में लगे हुए हैं। अहमदाबाद के एलिसब्रिज इलाके में हाल ही में एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहाँ एक सीनियर सिटीज़न दंपती को "डिजिटल अरेस्ट" के नाम पर डराकर 11.42 करोड़ रुपये की ठगी की गई। यह केस न केवल धोखाधड़ी का उदाहरण है बल्कि इस बात की भी चेतावनी है कि अपराधी किस तरह लोगों की भावनाओं और डर का फायदा उठाते हैं।
कैसे हुआ पूरा फ्रॉड?
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पहला कॉल – TRAI अधिकारी बनकर धमकी
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पीड़ित 73 वर्षीय महिला, जो सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज की रिटायर्ड प्रोफेसर हैं, को एक अज्ञात मोबाइल नंबर से कॉल आया।
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कॉलर ने खुद को TRAI अधिकारी बताते हुए कहा कि उनके मोबाइल नंबर से फ्रॉड हुआ है और उनका SIM कार्ड दो घंटे में बंद कर दिया जाएगा।
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साथ ही यह भी बताया गया कि उनके खिलाफ मुंबई के कोलाबा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज है।
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दूसरा कॉल – पुलिस अधिकारी का रूप
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थोड़ी देर बाद उन्हें दूसरा कॉल आया, जिसमें खुद को पुलिस अधिकारी बताने वाले ने कहा कि उनके आधार कार्ड से कई SIM कार्ड जारी हुए हैं और उनका इस्तेमाल धोखाधड़ी के लिए हुआ है।
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इसलिए अब उन पर केस चलाया जाएगा।
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वीडियो कॉल – CBI अधिकारी बनकर डिजिटल अरेस्ट
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इसके बाद एक वीडियो कॉल पर उन्हें एक व्यक्ति ने CBI का DCP बताते हुए डराया।
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उसने कहा कि उन पर FEMA, CBI, SEBI, RAW जैसी एजेंसियों से जांच होगी।
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फर्जी वॉरंट दिखाकर उन्हें "डिजिटल अरेस्ट" कर दिया गया।
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डिजिटल अरेस्ट का मतलब था कि उन्हें लगातार वीडियो कॉल पर रहना होगा और वे कहीं बाहर नहीं जा सकते।
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धोखे से पैसे ट्रांसफर करवाए
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अपराधियों ने महिला से कहा कि उनके सारे निवेश, गहने और बैंक बैलेंस की "वेरिफिकेशन" करनी होगी।
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उन्हें अपने गहने बेचने, फंड्स निकालने और पैसे अलग-अलग अकाउंट में ट्रांसफर करने को मजबूर किया गया।
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यह सब पैसा 24 घंटे बाद वापस करने का वादा किया गया।
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पति को भी बनाया शिकार
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महिला के पति को भी 10 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट में रखा गया।
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उनसे भी PPF, सेविंग्स और इन्वेस्टमेंट की रकम निकलवाकर ट्रांसफर कराई गई।
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कुल नुकसान
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दोनों से मिलाकर अपराधियों ने लगभग ₹11.42 करोड़ की भारी-भरकम रकम हड़प ली।
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कैसे खुला राज़?
महिला प्रोफेसर को शक हुआ और उन्होंने अपने एक पूर्व छात्र (जो पुलिस में नौकरी करता है) से इस बारे में बात की। तब जाकर खुलासा हुआ कि यह सब एक बड़ा साइबर फ्रॉड था। तुरंत CID क्राइम ब्रांच में शिकायत दर्ज कराई गई और अब पुलिस जांच कर रही है।
"डिजिटल अरेस्ट" फ्रॉड क्या है?
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यह एक नई तरह की साइबर धोखाधड़ी है।
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अपराधी खुद को CBI, पुलिस, कस्टम्स या TRAI अधिकारी बताकर लोगों को डराते हैं।
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झूठा केस, वॉरंट और जांच का हवाला देकर उन्हें वीडियो कॉल पर "नजरबंद" कर देते हैं।
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इस दौरान वे पीड़ित से बैंक डिटेल्स, इन्वेस्टमेंट और गहनों की जानकारी लेकर पैसा अपने खातों में ट्रांसफर करा लेते हैं।
इस घटना से क्या सीख मिलती है?
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कोई भी सरकारी एजेंसी डिजिटल अरेस्ट नहीं करती।
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पुलिस या CBI कभी भी WhatsApp/वीडियो कॉल पर किसी को नजरबंद नहीं करती।
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अनजान कॉल पर व्यक्तिगत जानकारी न दें।
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आधार, बैंक अकाउंट, इन्वेस्टमेंट या गहनों की जानकारी कभी भी साझा न करें।
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अगर कोई धमकाए तो तुरंत नजदीकी पुलिस से संपर्क करें।
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असली अधिकारी कभी फोन या वीडियो कॉल पर केस की जानकारी नहीं देते।
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फ्रॉड का शिकार हों तो तुरंत शिकायत करें।
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1930 (साइबर फ्रॉड हेल्पलाइन) या नजदीकी साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन पर रिपोर्ट करें।
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अहमदाबाद की यह घटना बताती है कि डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड कितना खतरनाक और सुनियोजित है। अपराधी लोगों की उम्र, पद और डर का फायदा उठाते हैं। खासकर सीनियर सिटीज़न और रिटायर्ड लोग इनका आसान निशाना बन जाते हैं।
हम सभी को जागरूक रहना चाहिए और किसी भी संदिग्ध कॉल या वीडियो कॉल पर तुरंत सतर्क होकर असली पुलिस से संपर्क करना चाहिए।