दिल्ली का सबसे बड़ा ‘डिजिटल अरेस्ट’ फ्रॉड: ₹22.92 करोड़ की ठगी, 4,236 लेन-देन में बंटे पैसे
साइबर अपराधियों के नए हथकंडों ने दिल्ली में एक बुजुर्ग को ऐसा जाल में फंसाया कि उनकी जीवनभर की मेहनत की कमाई कुछ ही हफ्तों में लूट ली गई। यह केस अब तक का दिल्ली का सबसे बड़ा डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड माना जा रहा है, जिसमें कुल ₹22.92 करोड़ की ठगी हुई।
कैसे हुआ धोखाधड़ी का खेल?
पीड़ित, एक रिटायर्ड बैंक अधिकारी, को 1 अगस्त को एक कॉल आया जिसमें कहा गया कि उनकी पहचान आतंक फंडिंग में इस्तेमाल हुई है।
कॉलर ने धमकाया कि केवल RBI और सुप्रीम कोर्ट के जरिये ही उन्हें “बेल आउट” किया जा सकता है, जिसके लिए उन्हें अपने फंड्स ट्रांसफर करने होंगे।
डर और दबाव में आकर उन्होंने 4 अगस्त से 4 सितंबर के बीच 21 बार बैंकों का चक्कर लगाया और 21 RTGS ट्रांसफर किए।
पैसे को तुरंत 16 बैंकों और 4,236 लेन-देन के जरिए अलग-अलग खातों में बांट दिया गया।
पैसे का इस्तेमाल मुख्य रूप से Yes Bank, ICICI Bank, HDFC Bank, Kotak Mahindra Bank, Axis Bank की शाखाओं के जरिए किया गया।
ठगी का तरीका (Digital Arrest Scam)
अपराधी पीड़ित को यह यकीन दिलाते हैं कि उनका आधार, पैन या पहचान आतंक या अपराध में इस्तेमाल हुआ है।
फिर कहते हैं कि गिरफ्तारी से बचने के लिए कोर्ट या RBI में जमानत राशि जमा करनी होगी।
धीरे-धीरे पीड़ित पर मानसिक दबाव और नियंत्रण बनाकर उनसे बार-बार पैसे ट्रांसफर करवाए जाते हैं।
इस केस की खास बातें
पीड़ित ने तीन बैंकों से कुल ₹22.92 करोड़ निकाले –
₹9.68 करोड़ (Central Bank)
₹8.34 करोड़ (HDFC Bank)
₹4.90 करोड़ (Kotak Mahindra Bank)
अपराधियों ने उनसे और ₹5 करोड़ की मांग की, लेकिन तभी पीड़ित ने विरोध किया और मामला सामने आया।
पुलिस के अनुसार अब तक ₹2.67 करोड़ को विभिन्न खातों में फ्रीज़ किया गया है।
पीड़ित का अनुभव
पीड़ित ने बताया कि अपराधियों ने उनकी पूरी जिंदगी पर कब्जा कर लिया था। यहां तक कि उनके दैनिक खर्चों और स्टाफ की तनख्वाह तक अपराधियों की अनुमति से ही दी जाती थी।
सबक और चेतावनी
किसी भी कॉल पर भरोसा न करें जो खुद को RBI, पुलिस या कोर्ट का अधिकारी बताए।
पैसे या अकाउंट डिटेल्स कभी साझा न करें।
ऐसे मामलों में तुरंत साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 या cybercrime.gov.in पर शिकायत करें।
याद रखें – कानूनन किसी भी कोर्ट या बैंक में फोन पर पैसे जमा करने की प्रक्रिया नहीं होती।
👉 यह केस हमें याद दिलाता है कि साइबर अपराधी अब सिर्फ डिजिटल नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी लोगों को ‘अरेस्ट’ कर सकते हैं। जागरूक रहें और दूसरों को भी सतर्क करें।